विशुद्ध सामथ्र्य इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुँचने का एक ही रास्ता है। प्रतिदिन मौन ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए बोलने की
विद्यार्थियों को उनकी मेहनत का साकार परिणाम मिले उन्हें उच्च श्रेणी की प्राप्ति हो इसके लिए आवश्यक है कि - प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ाई का समय चक्र निर्धारित करें। कब, कितने बजे और कितने समय उसे पढ़ाई करनी है, यह तय करे उसका पालन करें। प्रतिदिन क्लास अटेण्ड करना जरूरी है कक्
हमें शिक्षित किसे मानना चाहिए ? पहले, वे जो रोजाना आने वाले हालात का सामना सही ढंग से करते हैं और वे जो हालात से सामना होने पर सही निर्णय लेने और सही कदम उठाने में शायद ही कभी चूकते हों। दूसरे, वे जो दूसरों के साथ व्यवहार में बड़प्पन दिखाते हैं, दूसरों के अप्रिय व्यवहार और बातों का बुरा
जिन्दगी कोई ड्रेस रिहर्सल नहीं है। हम किसी भी दर्शन में विश्वास करते हों, पर हमें जिंदगी का खेल खेलने का मौका केवल एक ही बार मिलता है। दाँव पर इतनी कीमती चीजें लगी होती हैं कि आप जिंदगी यूँ ही बरबाद नहीं कर सकते। दाँव पर आने वाली पीढ़ियों का भविष्य लगा होता है। हम कहाँ हैं और किस दौर में हैं? जवाब
गुरु में दोष देखने वाले कभी पवित्र हो ही नहीं सकते हैं और उनकी मति-गति सदा दूषित होती रहेगी जिसका दुष्परिणाम यह होगा कि उनके दिल व दिमाग में कभी भी विमल विवेक यानी पवित्र-ज्ञान उत्पन्न अथवा ग्रहण हो ही नहीं सकता है। मगर इस बात पर सदा सावधान रहना है कि यह गुरु की महत्ता वाला उद्धरण आडम्बरी- ढोंगी-
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसकी उत्सुकता और कल्पनाशीलता भी साथ-साथ बढ़ती जाती है। बच्चा किसी भी प्रकार के खतरे की संभावनाओं व उसके कारणों को समझनें लगता है। यही समझ जहां उसे जागरूक और सावधान बना देती है। वहीं कभी-कभी डरपोक भी बना देती है। देखा गया है कि इस ड़र का विकास उन बच्चों मे ज्यादा ते
कठिनाइयों के बीच से गुजरे बिना मनुष्य का व्यक्तित्व अपने पूर्ण चमत्कार में नहीं आता और कठिनाइयाँ एक ऐसी खराद की तरह है जो मनुष्य के व्यक्तित्व को तराशकर चमका दिया करती हैं। कठिनाइयाँ मनुष्य-जीवन के लिए वरदान रूप ही होती हैं, साधारणतया महापुरुषों का सृजन कठिनाइयों की आग में तपने के बाद ही होता है।
जीवन एक अपार संभावनाओं की नदी है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप बाल्टी लेकर खड़े हैं या चम्मच लेकर। किसी गांव में हरि नाम का एक ईमानदार व मेहनती व्यक्ति रहता था। इसके ठीक विपरीत उसका बेटा घोर आलसी और निकम्मा थां। मेहनत कर पैसा कमाना उसके स्वभाव में नहीं था। यदी वह कुछ कमाकर लाता भी तो बेईमानी और ज
जब भगवान् हमारे हैं और हमारे भीतर ही हैं तो फिर चिन्ता कैसी ? शोक कैसा ? वे सर्वसमर्थ हैं, उनकी महिमा का पारावार नहीं, तो फिर भय कैसा ? उनकी सत्ता से कोई बाहर नहीं, आंखों से कोई ओझल नहीं, तो फिर पश्चाताप कैसा ? इन बातों को अपने जीवन में उतार लेने वाले मनुष्य के आनन्द की कोई सीमा नहीं रहती।
अन्तरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस “5 अक्टूबर” को मनाया जाता है। भारत में शिक्षकों को समर्पित “शिक्षक दिवस” 5 सितम्बर को मनाया जाता है। रोचक बात यह है कि “शिक्षक दिवस” विश्व के अधिकांश देशों में मनाया जाता है, लेकिन सबने इसके लिए अलग-अलग दिन निर्धारित किये हुए हैं। इसल